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22 मार्च 2012 ई. को बंगाल से पृथक् बिहार राज्य की स्थापना होने के बाद भी संस्कृत के विश्वविख्यात मनीषी विदेह जनक, योगी याज्ञवल्क्य, महर्षि वाल्मीकि, पाणिनि, गौतम एवं कणाद, आर्यभट्ट, वराहमिहिर, मण्डनमिश्र, उदयन, वाचस्पति, बाणभट्ट आदि और पालि के भगवान् बुद्ध, प्राकृत के भगवान् महावीर की भूमि बिहार की संस्कृत संस्थाओं का नियन्त्रण पूर्व में पश्चिम बंगाल में स्थित बिहारोत्कलबंग संस्कृत समिति के द्वारा, फिर बाद में बिहारोत्कलबंग संस्कृत समिति के द्वारा और पुनः बाद में पटना में स्थित बिहार संस्कृत एसोसियेशन के द्वारा होता था। इन संस्थाओं द्वारा दी जाने वाली उपाधियों पर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की स्थापना के बाद प्रश्न उठने लगा कि कोई भी उपाधि विश्वविद्यालय द्वारा दी जाने पर ही मान्य हो सकेगी, न कि किसी एसोसियेशन के द्वारा दी जाने पर। समय की माँग के अनुरूप दरभंगा राज के स्व. महाराजाधिराज डॉ. सर् कामेश्वर सिंह ने दरभंगा में संस्कृत विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए विशाल भूखण्ड के साथ अपना राजप्रासाद और महत्त्वपूर्ण पाण्डुलिपियों तथा पुस्तकों से सुसज्जित पुस्तकालय राज्यपाल के पदनाम से 30 मार्च 1960 ई. को दान के रूप सहर्ष प्रदान किया। फलस्वरूप स्व. महाराजाधिराज डॉ. सर् कामेश्वर सिंह की महनीय उदारता और बिहार राज्य के तत्कालीन राज्यपाल डॉ. जाकिर हुसैन तथा तत्कालीन मुख्यमन्त्री बिहारकेशरी डॉ. श्रीकृष्ण सिंह के सौजन्य से The Kameshwar Singh Darbhanga Sanskrit Vishvavidyalay Act, 1960 (Bihar Act VI of 1960) के अधीन स्थापित होकर 26 जनवरी 1961 ई. से दरभंगा में कामेश्वरसिंह-दरभंगासंस्कृतविश्वविद्यालय के नाम से यह विश्वविद्यालय क्रियाशील हो गया।
* Ministry of Human Resource Development
* University Grants Commission (UGC)
* Govt of Bihar Education Department